Friday 31 March 2017

# नौकरशाहों की भूमिका #

लोग चर्चा कर रहे हैं कि योगी जी पुरानी सरकार के साथ काम कर चुके नौकरशाहों को ठिकाने लगा कर नए अधिकारियों कि तैनाती क्यों नहीं कर रही है?  पहले की सरकारों ने तो सरकार बदलते ही अधिकारियों को ताश के पत्तों कि तरह फेंट दिया था और अपने चुनिंदा अधिकारियों की तैनाती सचिवालय से लेकर जिलों और थानों में कर दी थी . ऐसा आखिर क्या  ख़ास है इन अधिकारियों में कि नई सरकार उनमे इतना भरोसा दिखा रही है.

शायद आपको पता होगा कि उत्तर प्रदेश सरकार को प्रधान मंत्री कार्यालय से कुछ बेसिक टिप्स दिए जा रहे हैं इसीलिए योगी जी के निर्णयों में मोदी जी के काम करने के स्टाइल कि झलक साफ़ देखी जा सकती है. पुराने नौकरशाहों का इस्तेमाल कैसे करना है और कब तक करना है ये सब पूर्व निर्धारित है और एक योजना के तहत हो रहा है. मोदी जी को "ब्यूरोक्रेटिक मैनेजमेंट" में महारत हासिल है. आप को याद होगा २०१४ में जब केंद्र में मोदी सरकार आई तो मोदी जी ने कई वरिष्ठ नौकरशाह जो कांग्रेस की सरकार के साथ काम कर चुके थे उन्हें उन महत्वपूर्ण पदों पर बनाये रखा और उन्ही से काम लेते रहे. उनमे से कई अधिकारी तो गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय जैसे विभागों में अभी भी डटे हुए हैं  जैसे राजीव मह्रिषी और शक्तिकांता दास और ज़बरदस्त काम कर रहे हैं. 

मुझे लगता है चूँकि ये अधिकारी पुरानी सरकार के साथ काफी समय से काम कर रहे थे, इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि ये पिछली सरकार के कारनामो, घपलों और घोटालों से भी भली भांति परिचित होंगे. कौन सी हेराफेरी किसके कहने पे हुई; किसके दबाव में किसको बड़े बजट वाले टेंडर्स दिए गए; किन योजनाओं में कितने बड़े स्तर के घोटाले हुए हैं, किसके कहने पे हुए हैं और कितना कमीशन किस किस ने खाया, ये सारे तथ्य इन अधिकारियों से ज्यादा बेहतर कोई नहीं जानता होगा. इसके साथ साथ इन्हें ये भी पता है की पुरानी वाली सरकार अब अगले १०-१५ साल तक तो आने से रही. अब यही सरकार माई बाप है इसलिए जैसा कहे वैसा करते रहो. ब्यूरोक्रेट कभी किसी पोलिटिकल पार्टी के लिए लॉयल नहीं होता है वो सिर्फ सरकार के प्रति लॉयल होता है और होना भी चाहिए. सभी प्रमुख सचिव और ऊपर के अधिकारियों को ये बात साफ़ साफ़ बता दी गई है की भाई देख लो अगर नई सरकार की प्राथमिकताओं के साथ सामंजस्य बिठा के काम कर सकते हो तो ठीक है नहीं तो नई सरकार किसके साथ क्या क्या कर सकती है इसे बताने की  आवश्यकता नहीं है. मरता क्या न करता वाली हालत है कुछ नौकरशाहों की.  पुरानी सरकार की कारगुजारियों की परते दर परते उधेड़ी जा रही हैं. एक बार ये काम हो जाये फिर इनको भी ठिकाने लगा दिया जायेगा.   

लेकिन ऐसा नहीं है की सारे अधिकारी भ्रष्ट या घूसखोर होते है, इक्के दुक्के ही होते हैं जिन्होंने सबका  नाम ख़राब कर रखा है. ज्यादातर लोकसेवक इस संकल्प के साथ ही सिविल सेवा में आते हैं की उन्हें देश के लिए और समाज के लिए कुछ करना है. दिन में १५-१६ घंटे काम करके वो पूरी लगन से राष्ट्र निर्माण के कार्य में लग जाते हैं; नियम क़ानून से इतर किसी भी काम को करने से साफ़ साफ़ मना कर देते हैं फिर चाहे ट्रांसफर ही क्यों न हो जाये; बड़े जीवट होते हैं ये लोग.
कुछ ऐसे होते हैं जो दबाव में टूट जाते हैं; मंत्री जी अगर नियम विरुद्ध   काम करने को कहें तो ये विरोध तक नहीं करते और बहती गंगा में खुद भी हाँथ साफ़ करने में पीछे नहीं हटते; मलाई मक्खन मंत्री जी के साथ मिल बाँट कर खाते हैं . 
इसके अलावा एक और प्रकार होता है नौकरशाहों का जो कि आपको हर सरकार में बहुतायत में मिलेंगे और ये हर सरकार के चहेते भी होते हैं. ये  नौकरशाहों कि वो प्रजाति है  जिनकी कार्यशैली उत्तम कोटि की होती है, कोई भी काम हो जी जान लगा  के करते है और बड़ी एफीसिएंटली करते हैं.  मंत्री जी अगर इनसे नियम क़ानून में थोड़ा बहुत फेरबदल करने को कहें तो ये उसे कानून के दायरे में रहकर बड़ी आसानी से कर देते हैं. ये प्रजाति मलाई खाने में मंत्री जी कि मदद तो करती है लेकिन खुद मलाई नहीं खाती. 

नई योगी सरकार को प्रदेश में कम से कम अगले एक दशक तक काम करना है और चूँकि ये सरकार बहुत समय बाद सत्ता में आई है इसलिए इनकी अपनी कोई डेडिकेटेड नौकरशाहों कि टीम नहीं है.  फिर अच्छी टीम खड़ी करने में समय तो लगता ही है. #CleanIndiaMission :-)

Monday 27 March 2017

"अपना काम करने में शर्म कैसी"

अखिलेश बाबू बोल रहे थे - " हमें नहीं पता था कि ये अफसर भी झाडू लगा लेते हैं, नहीं तो मै भी इनसे खूब झाडू लगवाता"

अरे अखिलेश बाबू ये जो आपके अफसर हैं न इनमे से बहुतों ने मुख़र्जी नगर, नेहरू विहार, गाँधी विहार, परमानन्द, ढक्का गांव, करोल बाग़, राजिंदर नगर और इलाहाबाद कि तंग गलियों में छोटे छोटे कमरो में ज़िन्दगी गुज़ारी है. ये झाड़ू लगाने का काम तो इन्हें बखूबी आता है. शायद आपने ही आज तक अपने जीवन में कभी झाडू को हाँथ नहीं लगाया होगा. तभी आप झाड़ू लगाने के काम को इतना हेय और घृणित समझते हैं. क्या आपको पता है गाँधी जी अपने कमरे में खुद झाड़ू लगाते थे और उन्हें इस बात कि कभी शर्म नहीं महसूस हुई. वो तो यहाँ तक कहते थे कि "अपना काम करने में शर्म कैसी" और "स्वच्छता में ही भगवान् का वास होता है"

रोज झाड़ू लगाने से पद, प्रतिष्ठा, सम्मान से उत्पन्न होने वाला अहंकार ख़त्म हो जाता है. आप भी घर में और आस पास रोज झाड़ू लगाना शुरू करिये क्योंकि ऐसा लग रहा है कि रस्सी जल गई पर ऐंठन नहीं गई. अगर आपको अगला चुनाव जीतना है तो इस ऐंठन का जाना अति आवश्यक है.

आपके ये अफसर घाट घाट का पानी पी चुके हैं, इनकी सामर्थ्य का आंकलन आप अभी भी नहीं कर पाए. ये मोदी जी जो छप्पन इंच कि छाती ठोककर विकास पे विकास करते जा रहे हैं, ये सब इन्ही अफसरों कि बदौलत है. अफसरों कि क्षमता तो मोदी जी गुजरात में ही समझ गए थे और दिल्ली में उनका बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं. अखिलेश बाबू अब आप अफसरों को नौकर समझना बंद करिये और मोदी जी से जाके ट्रेनिंग लीजिये कि "ब्यूरोक्रेसी मैनेजमेंट" क्या होता है. अगर आपको अगले १०-१५ साल बाद सत्ता में वापस आने का सौभाग्य प्राप्त हो तो मोदी जी के इस मंत्र का उपयोग ज़रूर करियेगा. हो सकता है कि आप भी कुछ काम करवाना सीख जाएँ. # Swacch Bharat Mission :-)

# Media Should Stop Hate Campaign Against Yogi and Modi #

Even Plato in "Republic" maintains that for better governance only the "Philosopher King" should rule the state. Philosopher king is not prone to corruption and unethical behavior in public life.

Philosopher King means a person having knowledge of both Philosophy/Ethics/Spiritualism and Politics. He further says that Philosopher King should not have his own family (No wife, no children) so that he could dedicate himself completely for the betterment of the state without having any interest on accumulation of wealth for personal gain.

Uttar Pradesh Chief Minister Mahant Shri Yogi Aditya Nath has all the qualities of Plato's Philosopher King. Our Prime Minister Shri Narendra Modi also fulfills the same criteria of being a Philosopher King. And certainly under his able leadership India is rapidly moving towards becoming #IAmNewIndia.

History is being written and we are proud to be a part of it.

Friday 20 January 2017

# SaveOurTradition #Save Jallikattu

Hon'ble Supreme Court of India, As a concerned citizen of this country i request you to review the ban imposed on Jallikattu. Law must be equally applicable. If involving animals in sports is cruelty;then killing Goats, Buffaloes,Pigs, Cows, Chickens for their flesh is utterly cruel.

Any judgement of the Hon'ble SC must ensure that its essence is equally applicable for each and every individual and customary practices in any society. How can we differentiate two types of cruelty- One involving the animals in a customary sport as part of socio-cultural and religious practice in some southern states; and the other one is related to killing and eating flesh of animals (and for some it is also related to their religion). It's a matter of utter shame that for us latter is less cruel (Infact no cruelty involved) than former just because it satisfies our taste buds. Then my question is that why Cannibalism is also an offence? Is killing and eating animal is less abhor than killing and eating humans? Do Animal's lives have less value than human being? Or we treat them as our slaves (Multipurpose)- Use them not only for our comfort but also...... Oh My God we can also eat them when we please!

Most of these so called Animal Lovers/Activists are Non-vegetarians......They love to eat Mutton, Chicken,Beef, Pork....why do they forget that even in these cases Healthy Animals/Birds are killed.......This is also a cruelty to animals.. I am amazed where their concern/activism go when they eat the roasted/cooked flesh of these animals....where their love for animal vanishes.